” द प्रिन्स ” इतालवी भाषा में लिखित एक राजनीतिक निबंध है | इसे निकोलो माक्यावैली ने सन् 1513 में लिखा था | इसका प्रकाशन माक्यावैली के मरने के पांच सालो बाद सन् 1532 में इटली के फ्लोरेंस राज्य में हुआ था |
“द प्रिन्स” की चर्चा करने से पहले निकोलो माक्यावैली की जीवनी पर प्रकाश डालना चाहूँगा |
माक्यावैली (May 3, 1469 – June 21, 1527) इतालवी (Italian) दार्शनिक, लेखक, और नेता थे| उन्हें आधुनिक राजनीति-विज्ञान (modern political science) का गुरु माना जाता है| पूर्वी देशो में उन्हें “पाश्चात्य चाणक्य” के नाम से जाना जाता है| वे फ्लोरेंतिन गणराज्य के राजदूत के सचीव थे| उन्होंने दर्शन-शास्त्र (philosophy), राजनीति, सेना (military) और राष्ट्रीय सुरक्षा (national defense) के ऊपर, अपने अनुभव के अनुसार, लेख लिखे है- “The Art of War” and “Discourses on Livy”.
माक्यावैली ने “द प्रिन्स” को शासन करने की वास्तविक मार्गदर्शिका के रूप में लिखा है | “द प्रिन्स”
फ्लोरेंस के राजा लोरेंजो दे मेदिची को समर्पित है और माक्यावैली ने अपनी लेख भेंट के रूप में प्रस्तुत की थी | “द प्रिन्स” काल्पनिक या दुर्बोध नहीं है बल्कि यह सरल और खरा निबंध है | माक्यावैली ने वास्तविक और सहज सलाह को प्रस्तुत किया है | उन्होंने अनेक विषयों पर चर्चा की है | उनमे से प्रमुख विषयों का सारांश प्रस्तुत है –
राजनीतिज्ञ और युद्घ-कला (Statesmanship and Warcraft) :
माक्यावैली का मानना था कि एक तंदरुस्त खड़ी सेना ही अच्छे कानून को जन्म दे सकती है | उनका
बहुचर्चित कथन था, “The presence of sound military forces indicate sound laws”. युद्घ के
प्रति माक्यावैली के विचार अलग थे | उनका मानना था कि राज्य के विकास के लिए युद्घ आवश्यक है
लेकिन निर्णायक नहीं | यानी केवल युद्घ विकास नहीं ला सकता | युद्घ में विजयी होना स्वस्थ राज्य
की नीव है | “द प्रिन्स” में विस्तार से लिखा है किस तरह राज्य को हड़पना चाहिए, हड़प राज्यों की
जनता और मंत्रियों के साथ किस तरह पेश आना चाहिए ताकि वे आज्ञाकारी रहे और किस तरह अपने
राज्य के आतंरिक विद्रोह को रोकना चाहिए ताकि बाहरी युद्घ में अर्चाने न आये | माक्यावैली ने युद्घ में
जीतने के लिए केवल अस्त्र-शस्त्र और प्रबल सेना की प्रशंसा नहीं की | जीतने की लिए – कुटिल निति
(diplomacy), घरेलु राजनीति (domestic politics), कुशल रणनीति (tactical strategy),
भौगोलिक कौशल (geographic mastery), और एतिहासिक विश्लेषण (historical analysis) – का
प्रयोग अत्यंत आवश्यक माना है |
मित्रभाव और नफरत (Goodwill and Hatred) :
राजा को गद्दी पर सालों जमे रहने के लिए अपनी प्रजा की नफरत से बचना चाहिए | यह ज़रूरी नहीं
कि राजा को अपनी प्रजा से प्यार मिले | वास्तव में सबसे अच्छा होगा यदि प्रजा अपने राजा से डरे |
नफरत राजा के दुश्मनों को सहायता दे सकती है जिससे राजा अपनी गद्दी खो सकता है | माक्यावैली
ने क्रूरता को इस्तेमाल करने की सलाह दी है यदि क्रूरता से राजा के मित्रभाव सलामत रहे | राजा का
मित्रभाव, यानि प्रजा का राजा के साथ होना, घरेलु विद्रोह और बाहरी आक्रमण के समय एकता
बरकरार रखता है | प्रजा का मित्रभाव मिलने से राज्य में खुशहाली फैले ऐसा ज़रूरी नहीं है | राजा का
मित्रभाव केवल एक राजनैतिक औजार है जिससे राजा, अपने राज्य में स्थिरता लाकर, अपना
शासनकाल बढाता है |
स्वतंत्र इच्छा (Free Will) :
माक्यावैली ने “शूरता” और “सौभाग्य” का उपयोग कई बार किया है | “शूरता” का तात्पर्य व्यक्तिगत
गुण और “सौभाग्य” का तात्पर्य मौका या संजोग | माक्यावैली विश्लेषित करते है कि राजा की सफलता
या विफलता उसके मन की इच्छा और उसके आस-पास की परिस्थिति परपर निर्भर करती है | माक्यावैली इच्छा और नियतिवाद (determinism) को तोलकर कहते है कि मनुष्य
का कर्म को नियंत्रित करता है – 50% सौभाग्य (यानी मौका या संजोग) और 50% इच्छा |
हलाकि दूरदर्शिता से मनुष्य संजोग के हेर-फेर से बचाव कर सकता है | अतः माक्यावैली कहते है
कि मनुष्य अपना भाग्य प्रबल इच्छा से बनाता है मगर कुछ हद तक ही क्योंकि हालातों और
परिस्थितियों पर मनुष्य का जोर नहीं है |
धर्माचरण (Virtue) :
माक्यावैली धर्माचरण की परिभाषा देते है – धर्माचरण वो गुण है जिसकी लोग प्रशंसा करे, जैसे
दानशीलता, दुसरे का दया-माया करना, इश्वर-भक्ति, सहानुभूति और करूणा | माक्यावैली कहते है कि
राजा को धर्मचारित दिखलाई पड़ने की कोशिश करनी चाहिए मगर धर्म के लिए धर्म का पालन करना
राजा के लिए हानिकारक हो सकता है | धर्मचारित दिखलाई पड़ना चाहिए मगर धर्मचरित होना ज़रूरी
नहीं | प्रजा धर्माचरण को सरहाती है इसलिए उनके मित्रभाव को जीतने के लिए धर्मचारित दीखलाई
पड़ना राजा के लिए बेहतर होगा | यदि राजा पूरी निष्ठा से धर्म का पालन करे तो उसके लिए
हानिकारक है | राजा को पापाचरण का त्याग अवश्य नहीं करना चाहिए | पापाचरण जैसे क्रूरता और
बेईमानी के प्रयोग से राज्य का भला हो सकता है | राजा को नहीं भूलना चाहिए कि प्रारंभिक क्रूरता
से राज्य को दीर्घ स्थिरता मिल सकती है | राज्य की भलाई और खुशहाली से भी अधिक महत्वपूर्ण है
राज्य की स्थिरता और एकता जो आंतरिक विद्रोह और बाह्य-आक्रमण से राज्य को बचा सकती है |
पापाचरण का अनुसरण केवल पापाचरण के वास्ते नहीं करना चाहिए | ठीक उसी प्रकार धर्माचरण का
पालन केवल धर्म के लिए नहीं करना चाहिए | राजा का हर कदम अपने राज्य की भलाई नहीं बल्कि
राज्य पर उस कदम का क्या असर पड़ेगा यह सोच कर उठाना चाहिए | राजा को नहीं भूलना चाहिए
कि प्रारंभिक क्रूरता से राज्य को दीर्घ स्थिरता मिल सकती है | राजा को अपने निजी आचरण और
नीति से ऊपर उठकर, धर्माचरण और पापाचरण का पालन अपने राज्य के हेतु करना चाहिए |
मनुष्य की प्रकृति (Human Nature) :
माक्यावैली दृढ़ता से कहते है कि मनुष्य में ऐसे कई लक्षण है जो पैदायशी है | आम तौर पर हर
मनुष्य मतलबी होता है मगर प्रेम या मोह जीता भी जा सकता है और जीतने के बाद हारा जा
सकता है और हारने के बाद जीता भी जा सकता है | आम तौर पर लोग खुश और संतुष्ट रहते है
जब तक उनकी परिस्थिति में बदलाव नहीं आता | मनुष्य अपने समृधि के समय में विश्वासी हो
सकता है और नहीं भी | मगर विपत्ति में फंसा मनुष्य तुंरत स्वार्थी, कपटी और फायदा उठाना वाला
बन जाता है | मनुष्य दुसरे मनुष्य की उदारता, हिम्मत और इश्वर-भक्ति की प्रशंसा करता है परन्तु
स्वयं नहीं पालान करता | आकांक्षा उन्ही मनुष्यों में पाया जाता है जिन्हें थोडी-बहुत सत्ता मिली हो |
आम जनता अपने स्टेटस में खुश रहती है और ऊँचे स्टेटस में जाने की अभिलाषा नहीं रखती |
मनुष्य किसी भी मदद का स्वाभाविक रूप से आभारी रहता है और इस बंधन को आसानी से नहीं
तोडा जाता | हलाकि वफादारी जीती और हारी जा सकती है और मित्रभाव (goodwill) भी |
माक्यावैली के ये थे कुछ प्रमुख विषयों के प्रसंग | “द प्रिन्स” में माक्यावैली ने प्रत्येक अध्याय
(chapter) में विस्तार से विषयों पर, ऐतिहासिक घटनाओ का उदहारण देकर, अपने तर्क को शसक्त किया है |
अगले पोस्ट में माक्यावैली के बहुचर्चित कथन (famous quotations) पर चर्चा होंगी | तब तक के लिए नमस्कार |
बहुत अच्छी जानकारी। मैने हिन्दी विकिपिडिया के “मेकियावेली” नामक लेख में इसे लिंकित किया है।
कुछ चाणक्य चर्चा भी लगे हाथ कर दें.
kafi achh likha hai
In the early Renassiance period till Barroque period War, Life of an Innocent, the roles of a good ruler, were some of the important theories which were analyised by amny Spanish and italian thinkers. Maquiveli was one of them.
It is just the basic introduction. Actually the 150 pages books has been analyzed in the details by many thinkers who have written treaties for the Spanish/portuguese empire.
In this discussion, I would like to add that another important book which is a forerunner of this book, El Cortesano, translated in spanish by Baltasar Gracian and some essays of Francisco de Vitoria be discussed.
Precisely, this is an introduction to provide an insight about Machiavelli’s work for I was disappointed that no write-ups was present in Hindi.
My next post is about five famous quotes picked up from The Prince.
Please reply with names of other such works.
[…] https://nitinjalan.wordpress.com/2009/05/23/the-prince-post-1/ […]
i want to say many many thanks to write down all this thing in hindi o
so carry on and keep promoting hindi
बहुत अच्छी उपयोगी जानकारी
Thany you
jivan me sangharsh ke liye protsahit karta hai yeh lekh.
keep it up isi tarah likhte raho
God help you.
Thanks
Mere sapno ko pura karne ke liye esiki jrirat thi.
your work is nice
thanx hindi me kafi kuch acha lekh mila.
bahut achchha lekh mila. bahut dhanyabad.
——
advocate sheshkant gautam
kathmandu
bahut satik lekh.
आपके इस हौस्लाहफ्जाई का बहुत बहुत शुक्रिया | मेरे दुसरे पोस्ट भी आपको पसंद आयेंगे – खासकर Steve Jobs के बहुचर्चित भाषण, जो उन्होंने Stanford University में दिया था – Click on Jan 2012 on the right |
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Cankye ke samne mekavali ki kuch nahi he
आज से करीब 2300 साल पहले पहले पैदा हुए चाणक्य भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के पहले विचारक माने जाते हैं। पाटलिपुत्र (पटना) के शक्तिशाली नंद वंश को उखाड़ फेंकने और अपने शिष्य चंदगुप्त मौर्य को बतौर राजा स्थापित करने में चाणक्य का अहम योगदान रहा। ज्ञान के केंद्र तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य रहे चाणक्य राजनीति के चतुर खिलाड़ी थे और इसी कारण उनकी नीति कोरे आदर्शवाद पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान पर टिकी है। आगे दिए जा रहीं उनकी कुछ बातें भी चाणक्य नीति की इसी विशेषता के दर्शन होते हैं:
– किसी भी व्यक्ति को जरूरत से ज्यादा ईमानदार नहीं होना चाहिए। सीधे तनेवाले पेड़ ही सबसे काटे जाते हैं और बहुत ज्यादा ईमानदार लोगों को ही सबसे ज्यादा कष्ट उठाने पड़ते हैं।
– अगर कोई सांप जहरीला नहीं है, तब भी उसे फुफकारना नहीं छोड़ना चाहिए। उसी तरह से कमजोर व्यक्ति को भी हर वक्त अपनी कमजोरी का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।
vandai matram
– सबसे बड़ा गुरुमंत्र : कभी भी अपने रहस्यों को किसी के साथ साझा मत करो, यह प्रवृत्ति तुम्हें बर्बाद कर देगी।
– हर मित्रता के पीछे कुछ स्वार्थ जरूर छिपा होता है। दुनिया में ऐसी कोई दोस्ती नहीं जिसके पीछे लोगों के अपने हित न छिपे हों, यह कटु सत्य है, लेकिन यही सत्य है।
– अपने बच्चे को पहले पांच साल दुलार के साथ पालना चाहिए। अगले पांच साल उसे डांट-फटकार के साथ निगरानी में रखना चाहिए। लेकिन जब बच्चा सोलह साल का हो जाए, तो उसके साथ दोस्त की तरह व्यवहार करनाचाहिए। बड़े बच्चे आपके सबसे अच्छे दोस्त होते हैं।
– दिल में प्यार रखने वाले लोगों को दुख ही झेलने पड़ते हैं। दिल में प्यार पनपने पर बहुत सुख महसूस होता है, मगर इस सुख के साथ एक डर भी अंदर ही अंदर पनपने लगता है, खोने का डर, अधिकार कम होने का डर आदि-आदि। मगर दिल में प्यार पनपे नहीं, ऐसा तो होनहीं सकता। तो प्यार पनपे मगर कुछ समझदारी के साथ। संक्षेप में कहें तो प्रीति में चालाकी रखने वाले ही अंतत: सुखी रहते हैं।
– ऐसा पैसा जो बहुत तकलीफ के बाद मिले, अपना धर्म-ईमान छोड़ने पर मिले या दुश्मनों की चापलूसी से, उनकी सत्ता स्वीकारने से मिले, उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए।
– नीच प्रवृति के लोग दूसरों के दिलों को चोट पहुंचाने वाली, उनके विश्वासों को छलनी करने वाली बातें करते हैं, दूसरों की बुराई कर खुश हो जाते हैं। मगर ऐसे लोग अपनी बड़ी-बड़ी और झूठी बातों के बुने जाल में खुद भी फंस जाते हैं। जिस तरह से रेत के टीले को अपनी बांबी समझकर सांप घुस जाताहै और दम घुटने से उसकी मौतहो जाती है, उसी तरह से ऐसे लोग भी अपनी बुराइयों के बोझ तले मर जाते हैं।
– जो बीत गया, सो बीत गया। अपने हाथ से कोई गलत काम होगया हो तो उसकी फिक्र छोड़ते हुए वर्तमान को सलीके से जीकर भविष्य को संवारना चाहिए।
– असंभव शब्द का इस्तेमाल बुजदिल करते हैं। बहादुर और बुद्धिमान व्यक्ति अपना रास्ता खुद बनाते हैं।
– संकट काल के लिए धन बचाएं। परिवार पर संकट आए तो धन कुर्बान कर दें। लेकिन अपनी आत्मा की हिफाजत हमें अपने परिवार और धन को भी दांव पर लगाकर करनी चाहिए।
– भाई-बंधुओं की परख संकट के समय और अपनी स्त्री की परख धन के नष्ट हो जाने पर ही होती है।
– कष्टों से भी बड़ा कष्ट दूसरों के घर पर रहना है।
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Really !this is amazing and very good knowledgable..