स्टीव पॉल जॅाब्स (Steve Paul Jobs) (February 24, 1955 – October 5, 2011) का देहांत केवल छप्पन वर्ष की आयु में हुआ | दुनिया में कई लोग जनमते है और कई चले जाते हैं | और कई अपनी छाप छोड़ जाते है |
मगर कुछ ही होते हैं जिनकी छाप अपने परिवार, शहर, देश से बहार निकल कर पूरी दुनिया के, सिर्फ अमीर या सत्ताधारी या विशेषज्ञ या शैक्षिक क्षेत्र तक सिमित न रह कर, प्रत्येक व्यक्ति को छूती है और हर व्यक्ति उसके विचारों से निकली चीज़ों को अपने पास रखता है और रोज़ इस्तेमाल करता है |
हैं ऐसे कई लोग है, मगर वो बेनामी होकर चले जाते है| स्टीव जॅाब्स ही ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने न केवल युवकों को प्रेरित किया, बल्कि आम आदमी को अपने जीवन में सरलता लाने की नयी दिशा दिखलाई |
2005 में स्टीव जॅाब्स ने स्तान्फोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) के क्रमागति समारोह (Graduation Ceremony) में पंद्रह मिनट का भाषण दिया था | छोटा भाषण मगर प्रेरणादायक, उत्साहित और मनुष्य जीवन को कार्मिक दृष्टिकोण से देखने पर मजबूर कर देता है |
सरल और सच |
उनके भाषण का पहला शब्द था – धन्यवाद |
मुझे दुःख होता है कि इस भाषण का अनुवाद कई भाषाओं में उपलब्ध है मगर हिंदी में नहीं | अनुवाद करना आसान नहीं है | वक़्त और मेहनत लगता है – विडियो को बार-बार, रोक-रोकके सुनना पड़ता है, भावना के अर्थ को जीवित रख, सही शब्दों का चुनाव करना होता है| Youtube के विडियो के नीचे Interactive Transcript को सलाम जिसने भाषण को पांच-छह सेकंड के वाक्यों में तोड़कर मेरे समय की बचत की | अनुवादित भाषण इसी रूप में प्रस्तुत किया गया है |
जो भी हो – इस ब्लॉग के पढने वालों को इसकी चिंता नहीं करनी है, आप धन्यवाद दे तो बढावा मिलेगा | तो आज मैं उसके जानदार शब्दों को हिंदी का लिबास पहनाता हूँ –
0:22 धन्यवाद| (लम्बी सास भरते हुए, मुस्कान के साथ) मैं आज आपके बीच, दुनिया की सर्वश्रेष्ठ
0:30 विश्वविद्यालयों में से एक, आपके कमेंसमेंट पर आकर सम्मानित हुआ |
0:35 सच सामने आये, मैं कभी कॉलेज से graduate नहीं हुआ |
0:41 और आज मैं जहाँ घड़ा हूँ – इससे करीब मैं कभी कॉलेज graduation तक नहीं पहुंचा |
0:47 आज मैं आपको मेरे जीवन की तीन कहानियाँ कहना चाहता हूँ | बस इतना ही |
0:52 कोई बड़ी बात नहीं | बस तीन कहानियाँ |
0:55 सबसे पहली कहानी बिंदुओं को जोड़ने के बारे में है |
1:01 छह महीने में मैंने Reed College छोड़ दी |
1:03 मगर मैं करीब अठारह महीने तक, पूरी तरह से छोड़ने से पहले, कॉलेज मैं ही रहा |
1:09 तो आखिर मैंने कॉलेज क्यों छोड़ा?
1:12 यह मेरे पैदा होने से पहले शुरू हुआ |
1:15 मेरी जैविक माँ (biological mother) एक युवा, अविवाहित graduate छात्रा थी |
1:19 और उन्होंने मुझे गोद लेने (adoption) पर रखा |
1:22 उन्होंने निश्चय किया कि मुझे वही लोग गोद ले जिनके पास कॉलेज डिग्री हो |
1:26 तो मेरे लिए सब कुछ तय हो गया था कि मेरे पैदा होने पर
1:28 एक वकील और उसकी बीवी मुझे गोद ले लेंगे |
1:31 मगर मैं जब गर्भ से निकला तो आखिरी वक़त पर वकील और उसकी बीवी ने कहा कि
1:34 वे लड़की चाहते थे |
1:37 मेरे पालक माँ-बाप (adopted parents, foster parents), जो waiting list में थे,
1:40 उन्हें आधी रात को बुलावा आया कि, “हमारे पास एक अनपेक्षित (unexpected)
1:44 baby boy है, क्या आपको यह बच्चा चाहिए?”
1:47 उन्होंने कहा, “ज़रूर, क्यों नहीं !”
1:53 मेरी जैविक माँ (biological mother) को बाद में पता चला कि मेरी माँ कभी कॉलेज
से graduate नहीं हुई
1:55 और मेरे पिता कभी स्कूल से graduate नहीं हुए |
1:59 गोद लेने के आखिरी कागजों पर मेरी जैविक माँ (biological mother) ने sign करने
से मना कर दिया |
2:03 कुछ महीने बाद वे राज़ी हुई जब मेरे माता-पिता ने यह वादा किया कि
2:05 मैं कॉलेज ज़रूर जाऊँगा | यह मेरी ज़िन्दगी की शुरुआत थी |
2:12 और सत्रह साल बाद मैं कॉलेज गया | मगर मैंने भोलेपन में कॉलेज को चुना
2:19 जो Stanford College के जितना महंगा था |
2:22 और मेरे working-class माता-पिता के सारे बचत किये पैसे
2:24 मेरे tuition फीस में खर्च हो रहे थे |
2:27 छह महीने बाद, मुझे इसमें कोई अर्थ नहीं दिखा |
2:30 मुझे कुछ पता नहीं था कि मैं अपनी life से क्या करूँ |
2:32 और इसमें कॉलेज मेरी मदद कैसे कर सकता है – यह भी पता नहीं था |
2:36 और यहाँ मैं अपने माँ-बाप की पूरी ज़िन्दगी की कमाई को खर्च कर रहा था |
2:42 तो मैंने तय किया कि मैं कॉलेज छोड़ दूंगा और भरोसा था कि सब कुछ का हल खुद-ब-खुद निकल आएगा |
2:46 उस वक़्त यह सब बड़ा भयानक लगता था |
2:49 लेकिन पीछे मुड़कर देखने पर, यह मेरे सबसे अच्छे फैसलों में से एक है |
2:54 जैसे ही मैंने academic curriculum को छोड़ा, मैंने required classes लेना बंद कर
2:56 दिया जो मुझे पसंद नहीं थे |
2:59 और उन classes में जाना शुरु कर दिया जो अच्छी लगती थी |
3:04 यह सब कुछ खयाली (romantic) नहीं था | मेरे पास हॉस्टल रूम (dorm room) नहीं था,
3:08 तो मैं दोस्तों के कमरों के फर्श पर सोता था |
3:10 मैं पांच सेन्ट्स (5 cents) के लिए coke की बोतलों को वापस देता था ताकि खाना खरीद सकूँ
3:14 और हर रविवार रात सात मील (7 miles) पैदल चलकर, दूसरे शहर,
3:17 हरे कृष्णा मंदिर जाता था, हफ्ते के एक अच्छे खाने के लिए |
3:21 वहां का खाना मुझे बेहद पसंद था |
3:23 अपनी जिज्ञासा (curiosity) और अंतर्ज्ञान (intuition) को follow करते हुए,
3:26 मैं जिन-जिन चीज़ों से टकराया, वे सब मेरे लिए, बाद में, अनमोल साबित हुई |
3:29 उदहारण के तौर पर, उस ज़माने में, Reed College में शायद देश की सबसे अच्छी
3:34 सुलेख (calligraphy) शिक्षा मिलती थी |
3:38 सारे campus में, हर पोस्टर, हर गल्ले (drawer) के लेबेल बड़ी खूबसूरती
3:42 से हाथों से लिखे हुए थे |
3:45 क्योंकि मैंने curriculum छोड़ दी थी तो मैं किसी भी class में जा सकता था,
3:49 इसलिए मैंने सुलेख (calligraphy) पढने का फैसला किया |
3:53 मैंने serif और sans serif के बारे में सिखा,
3:56 शब्दों के बीच कितना फासला होना चाहिए,
3:59 एक बेहतरीन typography कैसे बेहतरीन बनती है – ये मैंने जाना |
4:03 वो खुबसूरत, ऐतिहासिक,
4:05 कलात्मक रूप से रहस्यपूर्ण (subtle) था, जो विज्ञान नहीं समझा सके
4:09 और यह सब मुझे आकर्षित करते थे |
4:12 दूर-दूर तक इन सबका कोई वास्तविक उपयोग नहीं था मेरी ज़िन्दगी में |
4:17 मगर दस साल बाद,
4:18 जब हम सबसे पहला Macintosh computer बना रहे थे,
4:21 वो सुलेख (calligraphy) की शिक्षा ताज़ा हो गयी | और हमने Mac में वो सब किया |
4:25 Mac पहला computer था जिसमे खुबसूरत typography थी |
4:29 अगर में इस course को नहीं लेता
4:32 तो Mac में कभी अनेक typefaces या बराबर दूरी के fonts नहीं होते |
4:37 और युंकी Windows ने Mac को हुबहू नक़ल की,
4:47 यह शायद सच होता कि किसी भी personal computers में सुलेख नहीं होता, अगर मैं वो class नहीं लेता |
4:57 जाहिर है कि, जब मैं कॉलेज में था,
5:00 आगे देखते हुए इन बिंदुओं को जोड़ना नामुमकिन था |
5:02 लेकिन दस साल बाद यह सब साफ़-साफ़ नज़र आता है |
5:07 फिर से, आप इन बिंदुओ को आगे देखते हुए नहीं जोड़ सकते;
5:10 आप पीछे मुड़कर ही जोड़ सकते है |
5:12 तो आपको विश्वास रखना होगा कि ये बिन्दुएँ – कैसे भी करके – भविष्य में जोड़ेंगी |
5:16 आपको विश्वास रखना होगा – अपने मन पर, नियति पर, ज़िन्दगी पर, कर्म पर, और जो भी |
5:22 भरोसा रखना कि बिन्दुएँ आगे चलकर जुड़ेंगी – यह आपको आत्मविश्वास
5:28 (confidence) देगा, भले चाहे आपको पत्थरों से भरे रास्ते पर चलना पड़े – और इससे ही फर्क पड़ता है |
5:38 मेरी दूसरी कहानी love और loss के बारे में है |
आगे का दो कहानियां अगले पोस्ट पर |
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