इतना आसान है क्या

21 08 2009

ख़ुशी ढूँढना इतना आसान है क्या
पता नहीं था
फिर इतनी दूर क्यों है ख़ुशी

मौज और साहिल के बीच का खेल है निराला
कभी चडाव कभी उतराव
क्या स्थिरता यही है

चैन ढूँढना इतना आसान है क्या
पता नहीं था
फिर इतनी दूर क्यों है चैन

सूरज और चाँद  के बीच का खेल है निराला
कभी आप तो कभी आप
क्या वक़्त यही है

दिन चढ़े और रातें उतरी
उम्र की परछाई जिस्म और दिमाग पर छपी
लग गया है एक ताला
चाबी ढूँढना इतना आसान है क्या !


क्रिया

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2 responses

21 08 2009
anil kant

बहुत अच्छी कविता लिखी आपने

22 08 2009
mequitnever

Thanks ! Hope you will like my other posts as well.

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