ख़ुशी ढूँढना इतना आसान है क्या
पता नहीं था
फिर इतनी दूर क्यों है ख़ुशी
मौज और साहिल के बीच का खेल है निराला
कभी चडाव कभी उतराव
क्या स्थिरता यही है
चैन ढूँढना इतना आसान है क्या
पता नहीं था
फिर इतनी दूर क्यों है चैन
सूरज और चाँद के बीच का खेल है निराला
कभी आप तो कभी आप
क्या वक़्त यही है
दिन चढ़े और रातें उतरी
उम्र की परछाई जिस्म और दिमाग पर छपी
लग गया है एक ताला
चाबी ढूँढना इतना आसान है क्या !
बहुत अच्छी कविता लिखी आपने
Thanks ! Hope you will like my other posts as well.